टोक्यो । जापान के वैज्ञानिकों ने एक ईल मछली के जीवाश्म के आधार पर दावा किया है कि यह इंसानों की अब तक की सबसे पुरानी ज्ञात पूर्वज है। इस जीवाश्म की खोज आज से करीब 130 साल पहले की गई थी। हालांकि, तब मॉर्डन साइंस इतनी विकसित नहीं थी कि इस जीवाश्म के बारे में पता लगा सके। अब जापानी वैज्ञानिकों ने हाई रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग तकनीक के जरिए किए गए अध्ययन के बाद बताया कि इस ईल के अंग इंसानों से काफी मिलते-जुलते हैं। ऐसे मे यह हमारी पूर्वज हो सकती है। जापान में टोक्यो विश्वविद्यालय में पालीटोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर तत्सुया हिरासावा ने कहा कि पैलियोस्पोंडिलस गुन्नी नाम के इस प्राणी के जीवाश्म के हर हिस्से की बारीकी से जांच की गई है। हिरासावा इस जीवाश्म की स्टडी के मुख्य लेखक भी हैं। 
उन्होंने बताया कि दो कारकों से इस अति प्राचीन ईल के जीवाश्म अब तक बचे रहे। इनमें से पहला इसका छोटा आकार है। यह मछली मात्र 2।4 इंच ही लंबी है। वहीं, दूसरा कारण जीवाश्म बनने से इसकी हड्डियां अपने पहले से आकार से काफी संकुचित हो गई थीं। नए अध्ययन से पहले, वैज्ञानिकों को पता था कि पैलियोस्पोंडिलस मध्य देवोनियन युग में रहने वाली एक जीव थी। यह जीव आज से लगभग 398 मिलियन से 385 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी पर रहती थी। इस मछली में अच्छी तरह से विकसित पंख थे लेकिन अंगों की कमी थी। मजे की बात यह है कि इस समय के अधिकांश कशेरुकियों (रीढ़ की हड्डी वाले) के विपरीत, इसमें दांतों की कमी लग रही थी। 2004 में, शोधकर्ताओं ने पोर्ट किया कि पैलियोस्पोंडिलस एक आदिम लंगफिश थी। 2016 के एक अध्ययन में दावा किया गया था कि यह हगफिश नाम की एक समुद्री मछली की रिश्तेदार थी। इसके एक साल बाद, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी की एक टीम ने मछली के हगफिश का रिश्तेदार होने के दावे पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि यह आधुनिक शार्क की तरह एक कार्टिलाजिनस मछली थी।इतने दावों के बाद हिरासावा और यू जी हू नाम से दो वैज्ञानिकों ने माइक्रो-कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैनिंग तकनीक से इस जीवाश्म का बारीकी से अध्ययन किया। इसके जरिए उन्होंने पैलियोस्पोंडिलस की हाई रिज़ॉल्यूशन वाली डिजिटल तस्वीरें निकालीं। इन नमूनों के स्कैन से कई प्रमुख विशेषताएं सामने आईं।