श्रीमद भागवत कथा का सनातन धर्म में खास महत्व है. शास्त्रों में बताया गया है कि पहली बार कथा श्रवण मात्र से ही राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई और उनका अकाल मृत्यु से बचाव हुआ था. यही कारण है कि समय-समय पर भक्त श्रीमद भागवत कथा का आयोजन अपने घर, सार्वजनिक स्थलों आदि पर करवाते रहते हैं. इन दिनों उत्तराखंड के चमोली जिले के गौचर के नजदीकी गांव (धारीनगर) के रघुनाथ मंदिर में 7 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा आयोजित की गई है. लोकल 18 से बातचीत में कथा वाचक आचार्य हिमांशु कंडवाल ने कथा सुनने से मिलने वाले पुण्य, नियम और यदि कथा न सुन पाएं, तो किस प्रकार पुण्य फल की प्राप्ति हो सकती है, के बारे में जानकारी दी है.

उन्होंने बताया कि श्रीमद भागवत कथा सभी वेदों का सार है. इसे सुनने से मनुष्य तृप्त होता है और जन्म जन्मांतर के पाप से मुक्त हो जाता है. साथ ही कथा सुनने या किसी भी शुभ काम को करवाने या करने के पीछे का उद्देश्य परम लक्ष्य की प्राप्ति ही होता है. वह कहते हैं कि कथा आयोजन स्थल में प्रवेश करने से पहले सांसारिक जीवन के दुख तकलीफों को भूलकर उस परम परमेश्वर ईश्वर का चिंतन मनन करना जरूरी है और घर से जिस उद्देश्य को लेकर कथा सुनने आते हैं, उसे पूरा जरूर करना चाहिए.

कलयुग में केवल प्रभु स्मरण से उद्धार
आचार्य हिमांशु कंडवाल आगे कहते हैं कि ‘कलयुग केवक नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा’, इसका मतलब है किकलयुग में केवल प्रभु का स्मरण ही भव से पार किए जाने का एकमात्र आधार है. यदि आपके पास एक स्थान पर बैठकर प्रभु का नाम लेने का समय नहीं है, तो आप चलते फिरते भी अपने मन मंदिर में परम परमेश्वर का स्मरण कर सकते हैं. ऐसा करने पर भी आपको भागवत कथा श्रवण का पुण्य फल प्राप्त होगा.