केरल सरकार की तरफ से विदेश मामलों में सचिव की नियुक्ति करना और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की तरफ से बांग्लादेश की आंतरिक स्थिति को लेकर की गई टिप्पणी विदेश मंत्रालय को बिल्कुल भी रास नहीं आई है।

विदेश मंत्रालय इसे संविधान के तहत विदेश से जुड़े मामले में केंद्र सरकार को दिए गए अधिकारों का उल्लंघन मानता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इन दोनों राज्यों को कहा है कि वह संवैधानिक क्षेत्र अधिकार का पालन करें।

बांग्लादेश में चल रहे छात्र आंदोलन को भारत ने वहां की आंतरिक स्थिति करार दिया हुआ है लेकिन सीएम बनर्जी ने कहा है कि अगर वहां की स्थिति खराब होती है और वहां की जनता पश्चिम बंगाल में शरण लेने के लिए आती है तो वह इस पर विचार करेंगी। बांग्लादेश ने इस बारे में भारत के विदेश मंत्रालय को अपनी आपत्ति जताते हुए कड़ा पत्र लिखा है।

केरल सरकार एक सचिव की नियुक्ति की है

बताते हैं कि बंग्लादेश सरकार ने कहा है कि ममता का बयान भड़काऊ और उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है। बांग्लादेश सरकार समझती है कि जब हालात सामान्य हो रहे हैं तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का इस तरह का बयान स्थिति को बिगाड़ सकती है। केरल सरकार ने हाल ही में विदेशी मामलों में सहयोग के लिए एक सचिव की नियुक्ति की है।

केरल सरकार ने कही ये बात

केरल सरकार का कहना है कि चूंकि वहां की बहुत बड़ी आबादी विदेशों में रहती है इसलिए उनके साथ सामंजस्य के लिए यह कदम उठाया गया है। इस बारे में पूछने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा कि, “भारतीय संविधान की 7वीं अधिसूची कें केंद्रीय सूची-एक के क्रमांक 10 में साफ तौर पर लिखा है कि विदेश मामले या इससे जुड़ा कोई भी मामला जो दूसरे देशों से जुड़ा हुआ है वह पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधिकार में आतै हैं। यह समवर्ती सूची में शामिल नहीं है और ना ही राज्यों का मामला है। राज्य सरकारों को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जहां उनका कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है।''

जायसवाल ने यह भी बताया कि पश्चिम बंगाल की सीएम बनर्जी की टिप्पणी पर बांग्लादेश सरकार की तरफ से आपत्ति विदेश मंत्रालय को प्राप्त हो गई है। यहां भी उन्होंने संविधान की संबंधित प्रावधानों का जिक्र किया और राज्य सरकार से विदेश से जुड़े मामले में हस्तक्षेप नहीं करने को कहा।