छत्‍तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में अति संवेदनशील इलाके में पड़ने वाले जबेली गांव में घुसते ही नक्सलियों द्वारा चुनाव बहिष्कार का बैनर लगा हुआ था, लेकिन फिर भी नक्सली धमकी को दरकिनार कर गांव के दिव्यांग जोगा कोर्राम घर से पैदल ही वोट डालने के लिए निकल पड़े, लेकिन जब वह शिफ्ट किए गए मतदान केंद्र समेली में पहुंचे तो उन्‍हें निराशा हाथ लगी। पता चला कि वोटर लिस्ट में उनका नाम ही नहीं है, जिस कारण वे मतदान नहीं कर सके।

जोगा कोर्राम दोनों पैर से दिव्‍यांग है। शासन से ट्राइसाइकिल उपलब्ध करवाई गई थी, लेकिन वह खराब हो चुकी है। शुक्रवार कि सुबह जोगा छह बजे ही घर से मतदान देने निकल पड़े थे, करीब दो किलोमीटर पैदल चलकर जब आधे रास्ते पहुंचे तो गांव की सरपंच के पति ने बाइक से उनको पोल‍िंग बूथ तक छोड़कर आने में मदद की। लेकिन मतदान केंद्र पहुंचने पर वोट डालने की इच्‍छा अधूरी रह गई।

वोटर लिस्‍ट में पिता का नाम कुछ और निकला

जब वोटर लिस्‍ट चेक की गई तो वहां (जोगा, पिता का नाम-  बंडी) की जगह (जोगा, पिता का नाम- नोड़ा) लिखा हुआ था। इसके बाद पीठासीन अधिकारी ने इस कारण से दो किलोमीटर तक रगड़ते हुए मतदान केंद्र तक पहुंचे दिव्यांग को लौटा दिया।पोलिंग बूथ पर मौजूद बीएलओ निर्मल नायक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शांति सभी ने कहा यही जोगा है, लेकिन मतदाता सूची में पिता का नाम मिसप्रिंट हो जाने के चलते दिव्यांग जोगा मतदान नहीं कर पाए और निराश होकर गांव को लौट गए।