भोपाल । वन विभाग की सतर्कता और सुरक्षा के तमाम दावों के बावजुद मप्र के जंगलों में लकड़ी माफिया का आतंक मचा हुआ है। आलम यह है कि माफिया के डर से वन विभाग के अधिकारी संवेदनशील क्षेत्र में गस्त नहीं करते और इसका फायदा उठाकर माफिया सागौन के पेड़ों को कटवाकर उसकी पड़ोसी राज्यों तक तस्करी करा रहे हैं। ऐसे ही तस्करों की चपेट में आष्टा और इछावर की सीमा से लगे खिवनी अभयारण्य भी है। खिवनी अभयारण्य से छापर, अरनिया जोहरी से आष्टा कन्नौद हाईवे से आष्टा शहर में आ जाते हैं। यहां से शुजालपुर, खुजनेर होते हुए राजस्थान पहुंचते हैं। खिवनी अभयारण्य में लगातार सागौन की कटाई जारी है। यह काम रात के समय किया जाता है। 500 से 2100 हेक्टेयर रकबे की एक बीट की सुरक्षा के लिए केवल एक के बीट गार्ड ही रहता है। उसे अपनी बीट में घूमना हो तो उसे 3 किमी से 21 किमी तक का सफर करना पड़ता है। कोई वनकर्मी लकड़ी कटाई को रोकने की हिम्मत दिखाता भी है तो मारपीट की जाती है।

 6 माह में 165 मामले दर्ज
खिवनी अभयारण्य में वन माफिया की पैठ का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि गत दिनों लाड़कुई वन परिक्षेत्र की महिला वन रक्षक जब लकड़ी कटाई रोकने पहुंची तो आरोपियों ने मारपीट की। पिछले 6 माह में कार्रवाई की बात करें तो आष्टा और  इछावर ब्लॉक में 165 मामले दर्ज किए गए हैं। इस दौरान 45.70 लाख की सागौन जब्त की गई। हालांकि 35 आरोपी ही पकड़े जा सके हैं। वन परिक्षेत्र में कटाई के बाद तस्करी का खेल शुरू होता है। तस्करी के लिए कंडम और चोरी के वाहनों का उपयोग किया जाता है। रात के अंधेरे में गांवों के रास्ते, शहर और फिर फोरलेन से होते हुए यह लकड़ी बड़े शहरों में पहुंचती है। लकड़ी चोर सागौन की एक सिल्ली 600 से 800 रुपए में बेचते हैं, इसके बाद यह 2000 या 2200 रुपए में बिकती है। फर्नीचर की दुकान पर इसकी कीमत तीन गुना हो जाती है। जिले से सागौन की तस्करी, भोपाल, होशंगाबाद और राजस्थान तक होती है।

नियमों में बंधे होने के कारण कार्रवाई नहीं
वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि नियमों में बंधे होने के कारण अमला माफिया के खिलाफ हथियारों का उपयोग नहीं कर पाता है। यदि बीट गार्ड अपनी बीट में घूम रहा है और उसके पास हथियार भी है तो उसे चलाने उसे अपने एसडीओ से परमिशन लेना होता है। जिन कर्मचारियों ने सचिंग के समय हथियार का इस्तेमाल बिना परमिशन किया, उन पर कार्रवाई हुई।