ईश्वर को हम भले ही न देख पाएं लेकिन ईश्वर हर क्षण हमें देख रहा होता है। उसकी दृष्टि हमेशा अपने भक्तों एवं सद्व्यक्तियों पर रहती है। अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि जीवन में कभी न कभी कठिन समय में ईश्वर स्वयं आकर आपकी सहायता कर चुके हैं। उस कठिन समय में आपके अंदर भक्ति की भावना उमड़ रही होगी और आप ईश्वर को याद कर रहे होंगे। शास्त्र कहता है कि ईश्वर के लिए संसार का हर जीव उसकी संतान के समान है। जो व्यक्ति उसके बनाये नियमों का पालन करते हुए जीवन यापन करता है ईश्वर उसकी सहायता अवश्य करते हैं।   
गजराज की कहानी आपने जरूर सुनी या पढ़ी होगी। नदी में गजराज को मगरमच्छ ने पकड़ लिया। इस कठिन समय में गजराज ने भगवान को पुकारा और भगवान विष्णु प्रकट हो गये। भगवान ने अपने चक्र से मगरमच्छ का सिर काट दिया और गजराज के प्राण की रक्षा की। सूरदास जी के जीवन की भी एक ऐसी ही कथा है।   
सूरदास जी देख नहीं सकते थे। एक बार गलती से एक गड्ढ़े में गिर गये। गड्ढ़े से निकलने का काफी प्रयास करने पर भी वह बाहर निकलने में असफल रहे। इस स्थिति में सूरदास जी ने गोपाल को पुकारा। भगवान श्री कृष्ण बालक रूप में पहुंच गये और सूरदास जी को गड्ढ़े से बाहर निकाला। मीरा के प्राण की रक्षा के लिए भगवान ने मीरा को मारने के लिए भेजे गये विष को प्रभावहीन कर दिया।   
बघेलखण्ड के बान्धवगढ़ में रहने वाले सेन नामक नाई की भी भगवान ने सहायता की और बघेलखंड का राजा सेन नाई का भक्त बन गया। यह घटना पांच छ: सौ साल पुरानी है। सेन नाई राजा की सेवा करता था। इसका काम प्रतिदिन राजा की हजामत बनाना और तेल मालिश करके स्नान कराना था। एक दिन सेन नाई जब राजमहल की ओर चला तब रास्ते में संतों की टोली मिल गयी। नाई उन्हें लेकर घर आ गया और उनकी खूब सेवा की। संतों के साथ बैठकर संत्संग में भाग लिया।   
राजा के स्नान करने का समय बीता जा रहा था। नाई के नहीं आने से राजा क्रोधित हो रहे थे। इसी समय भगवान स्वयं सेन नाई का वेष धारणकर राजा की सेवा में पहुंच गये। नई बने भगवान की सेवा से राजा का क्रोध दूर हो गया और मन हर्षित हो गया। सत्संग समाप्त होने के बाद सेन नाई को याद आया कि राजा की सेवा में देरी हो गयी है। हजामत का सामान लेकर डरता हुआ सेन नाई राजमहल में पहुंचा।  
राजा को देर से आने का कारण बताने लगा। इस पर राजा ने कहा कि तुम तो मेरी हजामत बना चुके हो। आज तुम्हारी सेवा से मैं अत्यंत प्रसन्न हूं। नाई समझ गया कि आज उसके कारण भगवान को नाई बनना पड़ा। इससे नाई को बड़ा अफसोस हुआ। राजा को जब इस बात का ज्ञान हुआ कि नाई की भक्ति की लाज रखने के लिए भगवान स्वयं आज नाई बनकर आये थे। राजा नाई की भक्त बन गया और उसे अपना गुरू मान लिया। ऐसी कई घटनाएं हैं जो ईश्वर के अस्तित्व और उसकी सहायता का प्रमाण देते हैं। इसलिए कभी भी खुद को बेसहारा नहीं समझना चाहिए। ईश्वर पर आस्था रखने वालों की ईश्वर सदैव सहायता करते हैं।