Lok Sabha Election 2024लोकसभा चुनाव 2024 में तीन चरणों के मतदान संपन्न होने के साथ ही उत्तर प्रदेश (uttar pradesh) में अब ये कारवां अवध और पूर्वांचल (avadh and purvanchal) की तरफ बढ़ चला है. इसको लेकर बीजेपी ने भी प्लानिंग शुरू कर दी है और ठाकुर समुदाय (thakur) से बातचीत कर रही है. अवध और पूर्वांचल क्षेत्र में कहीं न कहीं ठाकुर समुदाय के वोटर सियासी तौर पर काफी मजबूत माने जाते हैं. पूर्वांचल और अवध की सीट पर ठाकुर समुदाय अहम रोल निभाते हैं, जिसके चलते बीजेपी अब रणनीति को साधने में लग गई है और यूपी की सियासत में पिछले कुछ दिनों में कई बड़े कदम उठाए हैं.

मिशन-80 पर काम कर रही है बीजेपी

देश में 543 लोकसभा सीट हैं और यूपी में सबसे ज्यादा 80 सीट हैं, इस लिहाज किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश सबसे अहम हो जाता है. 2019 में उत्तर प्रदेश में एनडीए ने 80 में 64 सीटों पर जीत दर्ज की थी और इस बार के चुनाव में मिशन-80 (mission 80) का टारगेट यूपी में सेट किया है, लेकिन टिकट बंटवारे के चलते ठाकुर समाज की नाराजगी पार्टी के लिए बढ़ा दी है. चुनावों से पहले बीजेपी के खिलाफ ठाकुर समुदाय लामबंद होता नजर आया था और सहारनपुर के ननौत गांव, मेरठ के कपसेड़ा, गाजियाबाद के धौलाना और नोएडा के जेवर में ठाकुरों की पंचायतें हुईं थी. ऐसे में ठाकुर समाज की नाराजगी ने बीजेपी के लिए टेंशन बढ़ा दी है. इसलिए बीजेपी ने अपनी रणनीति पर काम करते हुए ठाकुर समुदाय को साधने में जुट गई है.

 

अमित शाह और राजा भैया की मुलाकात

कुछ दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने जनसत्ता पार्टी के अध्यक्ष और कुंडा से विधायक राजा भैया से मुलाकात थी, जिसे ठाकुर समाज की नाराजगी को दूर करने से जोड़कर देखा जा रहा है. राजा भैया यूपी में ठाकुर समुदाय के बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं और उनकी पकड़ सिर्फ प्रतापगढ़ सीट पर ही नहीं बल्कि सुल्तानपुर से लेकर अमेठी, रायबरेली, अयोध्या, प्रयागराज और कौशांबी क्षेत्र तक है. राजा भैया 2004 से लेकर 2017 तक सपा के लिए सियासी मददगार साबित होते रहे हैं, लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से बीजेपी के साथ खड़े नजर आते हैं.

बृजभूषण सिंह के बेटे को टिकट

उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने सबसे देर में अगर किसी लोकसभा सीट पर टिकट का ऐलान किया है तो वह बृजभूषण शरण सिंह की कैसरगंज सीट थी. महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोप में फंसे बृजभूषण शरण को उम्मीदवारी को लेकर बीजेपी कशमकश में फंसी हुई थी, क्योंकि उनका अपना सियासी आधार है. गोंडा और बस्ती मंडल में ठाकुरों के बीच बृजभूषण सिंह की मजबूत पकड़ मानी जाती है. बीजेपी यौन शोषण के आरोपी बृजभूषण को टिकट देने से हिचकिचा रही थी, लेकिन उसने ठाकुर वोटों के चलते ही बीच का रास्ता निकाला और उनके बेटे को प्रत्याशी बनाया है.

रायबरेली में भी ठाकुर उम्मीदवार

गांधी परिवार के गढ़ और देश की हाई प्रोफाइल माने जाने वाली रायबरेली लोकसभा सीट पर बीजेपी ने दिनेश प्रताप सिंह को उतारा है, जो ठाकुर समाज से आते है. बीजेपी से इस सीट पर कई दावेदार माने जा रहे थे, जिसमें सपा के विधायक मनोज पांडेय का नाम भी चर्चा में था. इसके बावजूद बीजेपी ने दिनेश प्रताप सिंह को रायबरेली सीट पर राहुल गांधी के खिलाफ उतारा है. 

सीट निकालने में माहिर हैं ठाकुर उम्मीदवार

 पश्चिमी यूपी में  बीजेपी ने सिर्फ मुरादाबाद सीट से इस बार 14 ठाकुर प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि 2019 में 17 ठाकुर प्रत्याशी उतारे थे और 2014 में 21 उम्मीदवार उतारे थे. बीजेपी ने इस बार भले ही कम प्रत्याशी उतारे हों, लेकिन ठाकुरों की आबादी से ज्यादा प्रत्याशी उतारे हैं. यूपी में 7 फीसदी के करीब ठाकुर मतदाता हैं, लेकिन उनके प्रभाव हर बार देखा जाता है और वो सीट निकालने में सफल रहते हैं. सूबे की 80 लोकसभा सीट में से 20 सीट पर ठाकुर समाज का मजबूत दखल है. सूबे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी ठाकुर समुदाय से आते हैं. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 63 राजपूत विधायक जीतने में सफल रहे थे जबकि 2022 में 49 ठाकुर विधायक बने. ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी की प्लानिंग ठाकुरों को मैनेज करने में इस बार सफल होती है या नहीं.