पिछले चुनाव में दस सीटों पर हार-जीत के अंतर से अधिक थे नोटा के वोट


भोपाल । मप्र में एक-दो दिन में चुनाव का बिगुल बज जाएगा। हालांकि अभी तक किसी भी पार्टी ने अपने सभी प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं की है। लेकिन घोषित और अघोषित प्रत्याशी हार-जीत के गणित का आकलन करने में जुटे हुए हैं। उनमें से कई सीटें ऐसी हैं जहां हार-जीत के अंतर से अधिक नोटा को वोट मिले थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में हार-जीत के दिलचस्प रिकॉर्ड बने थे। प्रदेश की 230 सीटों में से 10 पर हार-जीत का अंतर एक हजार से कम वोटों का था, जबकि यहां नोटा ने इस अंतर से अधिक वोट हासिल किए थे। एक तरह से कहा जाए तो नोटा ने कांग्रेस और भाजपा की जीत-हार का फैसला किया था।  
10 सीटों पर विजयी प्रत्याशियों के जीत की मार्जिन 6028 वोट का था। वहीं, इन 10 सीटों पर नोटा ने 18872 वोट हासिल किए थे। इससे लगता है कि अगर मतदाताओं की पसंद के उम्मीदवार होते तो हार-जीत में अंतर देखने को मिल सकता था। इन दस सीटों में से सात पर कांग्रेस और तीन पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। जाहिर तौर पर दोनों ही दल 2023 के विधानसभा चुनाव में पिछली बार मिली हार को जीत में बदलने या जीत के मार्जिन को बढ़ाने पर फोकस कर रहे हैं। गौरतलब है कि भारत में मतदाताओं को अपने चुने हुए जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार है, जिसे राइट टू रिकॉल कहते हैं। इसी तरह यदि कोई उम्मीदवार पसंद  नहीं है तो इनमें से कोई नहीं  (नन ऑफ द अबव या नोटा) का विकल्प चुन सकते थे। इस विकल्प को 2013 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में शामिल किया था।  इस तरह का विकल्प देने वाला भारत दुनिया का 14 वां देश है।
सिर्फ 121 वोट से मिली हार
प्रदेश में सबसे कम मतों से विजयी होने का रिकॉर्ड ग्वालियर ग्रामीण से कांग्रेस के प्रवीण पाठक का है। उन्होंने भाजपा के नारायण कुशवाह को 121 मतों से पराजित किया था। इस सीट पर नोटा ने 1349 मत हासिल किए थे। दूसरी सबसे कम अंतर वाली जीत सुवासरा से कांग्रेस के हरदीपसिंह डंग की थी। उन्होंने भाजपा के राधेश्याम पाटीदार को 350 मतों से हराया था। यहां नोटा ने 2976 मत हासिल किए थे।


यहां दिखा नोटा का असर
प्रदेश में 10 चिधानसभा सीटें ऐसी थी जहां जीत-हार की मार्जिन से ज्यादा  नोटा को वोट पड़े थे। ग्वालियर ग्रामीण  विधानसभा सीट पर कांग्रेस के प्रवीण पाठक 121 वोट से जीते थे, जबकि नोटा को 1349 वोट पड़े थे। इसी तरह कोलारस विधानसभा सीट पर भाजपा के वीरेंद्र रघुवंशी को 720 वोट से जीत मिली थी, वहीं नोटा को 1674 वोट पड़े थे। बीना विधानसभा सीट से महेश रॉय 460 वोट से जीते थे, वहां नोटा को 1531 मिले थे। राजनगर विधानसभा सीट ये विक्रम सिंह 732 वोट से जीते थे, वहां नोटा को 2485 वोट मिले थे। दमोह विधानसभा सीट पर राहुल सिंह 798 वोट से जीते थे, जबकि नोटा को 1299 वोट पड़े थे। जबलपुर उत्तर विधानसभा सीट से विनय सक्सेना 578 वोट से जीते, नोटा को 1209 वोट मिले। ब्यावरा विधानसभा सीट से गोवर्धन दांगी 826 वोट से जीते, नोटा को 1481 वोट मिले थे। राजपुर विधानसभा सीट से बाला बच्चन की 932 वोट से जीत हुई थी, जबकि नोटा को 3358 पड़े थे। जावरा विधानसभा सीट पर राजेंद्र पांडेय  511 वोट से जीते थे, वहीं नोटा को 1510 वोट मिले थे। सुवासरा विधानसभा सीट पर हरदीप सिंह डंग 350 वोट से जीते थे, जबकि नोटा को 2976 वोट मिले थे।


ये नेता 1000 से कम वोटों से जीते थे
2018 में सबसे कम 121 मतों से ग्वालियर ग्रामीण में प्रवीण पाठक की जीत हुई थी।
दमोह से भाजपा के वरिष्ठ नेता जयंत मलैया भी 798 मतों से चुनाव हार गए थे।
कमलनाथ मंत्रिमंडल में गृह मंत्री बाला बच्चन सिर्फ 932 मतों से चुनाव जीते थे।
1000 से कम वोटों से विजयी सीटों में सात कांग्रेस और तीन भाजपा को मिली थी।