अयोध्या । यूपी के अयोध्या में भगवान बालकराम ने शनिवार को पहली बार 25 दिन बाद दोपहर में विश्राम किया है। वे भक्तों को लगातार 15 घंटे दर्शन दे रहे थे। भक्तों की अगाध आस्था को देखते हुए वह भी तपस्या कर रहे थे और रोजाना लगातार भक्तों को 15 घंटे दर्शन दे रहे थे। मंदिर में रामलला चूंकि पांच वर्षीय बालक के रूप में विराजमान हैं इसलिए उन्हें अब दोपहर में विश्राम देने की व्यवस्था शनिवार से शुरू की गई है। 
दोपहर 12 बजे की आरती के बाद मंदिर का पट बंद कर दिया गया। पट एक बजे खुला। इस बीच भक्तों को रामलला के दर्शन नहीं हुए। 23 जनवरी को जब से राममंदिर भक्तों के लिए खुला तब से मंदिर में भक्तों की कतार टूटने का नाम ही नहीं ले रही है। अस्थायी मंदिर में रामलला का दर्शन दो पालियों में होता था। सुबह सात से 11:30 व दोपहर दो से 7 बजे तक ही दर्शन होते थे। नए मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद जब 23 जनवरी को पहली बार मंदिर भक्तों के लिए खुला तो आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। भारी भीड़ के चलते व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गईं थीं। पहले ही दिन 4 लाख से अधिक भक्तों ने रामलला के दर्शन किए। 23 जनवरी को मंदिर पूर्व के समय सुबह 7 बजे खुला, लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा उमड़ी कि रात 10 बजे तक मंदिर को खोलना पड़ा। इसके बाद से ही लगातार सुबह 6:30 से रात दस बजे तक मंदिर में दर्शन होते रहे। रोजाना डेढ़ से दो लाख भक्त दर्शन को पहुंच रहे हैं जिसके चलते रामलला को दोपहर में विश्राम भी नहीं कराया जा रहा था। 
राममंदिर लगातार 15 घंटे खोलने के कारण रामलला को विश्राम नहीं मिल पा रहा था। इसको लेकर संतों ने आपत्ति भी की थी। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने भी एक बयान में कहा था कि रामलला को 15 घंटे तक जगाना उचित नहीं है। वहीं राम जन्मभूमि के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास समेत अन्य संतों ने कहा था कि रामलला बालक के रूप में विराजमान हैं और एक बालक को लगातार 15 घंटे तक जगाना शास्त्रसम्मत नहीं है। इसके बाद शनिवार से ट्रस्ट ने रामलला को दोपहर में विश्राम कराने की व्यवस्था शुरू की है। शनिवार से रामलला को दोपहर में करीब 45 से 50 मिनट का विश्राम पुजारी करा रहे हैं। रामजन्मभूमि परिसर में संचालित 45 दिवसीय मंडलोत्सव में शनिवार को पूजित गंगाजल से रामलला की उत्सव मूर्ति का अभिषेक किया गया। माघ शुक्ल अष्टमी को राममंदिर के ट्रस्टी जगद्गुरु विश्वप्रसन्न तीर्थ ने प्रमोदवन स्थित अपने आश्रम में गंगाजल से युक्त कलश की विधिविधान पूजा-अर्चना की। इसके बाद पैदल कलश लेकर रामजन्मभूमि परिसर पहुंचे। जहां यज्ञस्थल का गंगाजल से अभिषेक किया गया और कलश स्थापना कर पूजन हुआ।